कहते हैं ना –
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
22 साल की उम्र में MBA की तैयारी करने घर से निकले प्रफुल्ल बिल्लोर को भी पता नहीं था कि ये एक एमबीए शब्द एक दिन उन्हें दुनियाभर में मशहूर बना देगा। इंदौर से अहमदाबाद पहुंचे प्रफुल्ल का सपना IIM कर एक अच्छी नौकरी हासिल करना था, लेकिन जब एमबीए में सफलता नहीं मिला तो प्रफुल्ल ने चाय का ठेला लगाने का सोचा। सुखी सम्पन्न परिवार से आने वाले प्रफुल्ल ने जब घरवालों से इसकी चर्चा की तो जैसा सोचा था, वैसा ही रिएक्शन मिला। जिस समाज में लोग अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर इसलिए बड़ा करते हैं, ताकि बेटा नाम रौशन करें, अच्छी नौकरी और कारोबार करें, वहां प्रफुल्ल , जो घर से तो एमबीए की तैयारी के लिए निकले थे, लेकिन चाय का ठेला लगाने की ठान बैठे थ उनके लिए परिवार को मना पाना आसान नहीं था।
अहमदाबाद से शुरुआत
धार (DHAR) के एक छोटे से गांव लबरावदा के किसान परिवार के प्रफुल्ल बिल्लौरे IIM अहमदाबाद से MBA करना चाहते थे, लेकिन जब सक्सेस हाथ नहीं लगी तो दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों की ओर रुख ककिया लेकिन दिल लगा तो अहमदाबाद में। प्रफुल्ल को अहमदाबाद शहर इतना पसंद आया कि वो वहीं बसने की सोचने लगे। अब रहने के लिए पैसे चाहिए और पैसे के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा, यही सोचकर प्रफुल्ल ने अहमदाबाद में मैकडॉनल्ड में नौकरी कर ली। यहां प्रफुल्ल को 37 रुपए प्रति घंटे के हिसाब से पैसे मिलते थे और वह दिन में करीब 12 घंटे काम करते थे।
एक आइडिया जिसने बदल दी प्रफुल्ल की दुनिया
नौकरी करते हुए प्रफुल्ल को एहसास हुआ कि वह जिंदगी भर मैकडॉनल्ड की नौकरी तो नहीं कर सकते, इसलिए उन्होंने अपना खुद का बिजनेस शुरू करने की सोची। लेकिन बिजनेस शुरू करने के लिए पैसे, प्रफुल्ल के पास नहीं थे। ऐसे में प्रफुल्ल ने ऐसा बिजनेस करने के बारे में सोचा जिसमें पूंजी भी कम लगे और आसानी से भी हो जाए। बस यहीं से चाय का काम शुरू करने का आइडिया उनके दिमाग में आया। काम की शुरुआत के लिए प्रफुल्ल ने अपने पिता से झूठ बोलकर पढ़ाई के नाम पर 10 हजार रुपए मांगे। इन्हीं पैसों से प्रफुल्ल ने चाय का ठेला लगाना शुरू किया।
शुरुआती दिनों में हुई मुश्किल
पहले दिन प्रफुल्ल बिल्लौरे की एक भी चाय नहीं बिकी तो उन्होंने सोचा कि अगर कोई मेरे पास चाय पीने नहीं आ रहा तो क्यों ना मैं खुद उसके पास जाकर अपनी चाय ऑफर करूं। प्रफुल्ल वेल एजुकेटेड हैं, अच्छी इग्लिश बोलते हैं, उनकी यह तरकीब काम आई और सब बोलते कि चाय वाला भी अंग्रेजी बोलता है, और चाय की दुकान चल निकली। दूसरे दिन 6 चाय बेची पर चाय 30 रुपए के हिसाब से 150 रुपए कमाए। प्रफुल्ल सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक जॉब करते थे और शाम 7 बजे से रात 11 बजे तक अपने चाय का स्टॉल लगाते थे। काम अच्छा चलने लगा 600 कभी 4000 कभी 5000 तक सेल होने लगे और उन्होंने अपनी जॉब छोड़ दी और अपना पूरा फोकस अपने चाय पर किया।
क्या है MBA चाय का राज
चाय का काम अच्छा चलने लगा नेटवर्क अच्छे बन गए तो प्रफुल्ल ने सोचा क्यों ना अब दुकान का कोई एक अच्छा सा नाम रख लें, जिससे और अच्छी मार्केटिंग हो। लगभग 400 नाम सेलेक्ट करने के बाद एक नाम फाइनल किया, जो था ‘मिस्टर बिल्लोरे अहमदाबाद’ जिसका शॉर्ट नाम ‘MBA चाय वाला’ पड़ा। शुरुआत में लोग उन पर खूब हंसते, मजाक बनाते लेकिन धीरे-धीरे लोगों को प्रफुल्ल का आइडिया पसंद आने लगा।
प्रफुल्ल बिल्लौर का अचीवमेंट
‘MBA चाय वाला’ धीरे-धीरे फेमस हो गया। अब लोकल इवेंट, म्यूजिकल नाइट, बुक एक्सचेंज प्रोग्राम, वुमन एम्पावरमेंट, सोशल कॉज, ब्लड डोनेशन जैसी हर जगह ‘MBA चाय वाला’ दिखाई देता। प्रफुल्ल ने वेलेंटाइन के दिन ‘सिंगल के लिए मुफ्त चाय’ दी, जो वायरल हो गई और वहां से उनको और भी ज्यादा पॉपुलेरिटी मिली। अब उन्हें और भी बड़े ऑर्डर मिलने लगे। आज ‘MBA चाय वाला’ नेशनल और इंटरनेशनल इवेंट करते हैं। प्रफुल्ल ने 300 स्क्वायर फीट में अपना कैफे खोला और पूरे भारत में फ्रेंचाइजी दी। एक वक्त जिन MBA संस्थानों में जाकर पढ़ाई करना प्रफुल्ल बिल्लोरे का सपना था। आज वही संस्थान प्रफुल्ल को अपने यहां बतौर मैनेजमेंट गुरू लेक्चर देने के लिए बुलाते हैं। महज 25 साल की उम्र में उनका नेटवर्थ सालाना 3 से 4 करोड़ का है। आज देश के 22 शहरों में और लंदन में भी ‘MBA चायवाला’ के नाम से उसके आउटलेट हैं।
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