सुधा चंद्रन (Sudha Chandran)आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। वह टीवी की पॉप्युलर ऐक्ट्रेसेस में से एक हैं और भरतनाट्यम डांसर (Bharatnatyam dancer) भी। सुधा चंद्रन इस बात की मिसाल हैं कि
“अगर किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हें उससे मिलाने में लग जाती है”
बॉलीवुड में कई सितारों ने अपने टैलेंट के दम पर जगह बनाई है. इसमें 80-90 के दशक के बीच जगह बनाने वाली एक्ट्रेस सुधा चंद्रन का भी नाम शामिल है. 1984 में उनकी पहली फिल्म मयूरी तेलुगू भाषा में रिलीज हुई थी जिसका बाद में हिंदी में रीमेक बनाया गया जिसका नाम ‘नाचे मयूरी’ था.यह फिल्म सुधा की पर्सनल लाइफ से ही प्रेरित थी. दरअसल, सुधा की पर्सनल लाइफ काफी उतार-चढ़ाव भरी रही थी.
1981 में 17 साल की उम्र में सुधा के साथ ऐसा हादसा हुआ था जिसने उनकी ज़िंदगी बदल दी थी. दरअसल, एक बस में सफर करते समय सुधा को गंभीर चोट लग गई थी क्योंकि उस बस का एक्सीडेंट हो गया था. इस हादसे में सुधा के एक पैर में चोट लगी जिसमें बाद में गैंगरीन हो गया और इस वजह से उनका एक पैर काटना पड़ गया. इसके बाद सुधा की ज़िंदगी का सबसे कठिन दौर शुरू हुआ क्योंकि सुधा एक बेहतरीन डांसर थीं और पैर कट जाने की वजह से वो दोबारा कभी डांस नहीं कर सकती थीं.
फिल्में फ्लॉप हुईं तो लोगों ने दी इंडस्ट्री छोड़ने की सलाह
सुधा चंद्रन ने टीवी ही नहीं बल्कि फिल्मों में भी काम किया। एक वक्त ऐसा आया जब उनकी फिल्में फ्लॉप होने लगीं और लोगों ने उन्हें ऐक्टिंग छोड़ने की सलाह दे डाली। उस दौर को याद करते हुए सुधा चंद्रन ने कहा, ‘शुरुआत में इंडस्ट्री में काम पाने के लिए मुझे संघर्ष नहीं करना पड़ा क्योंकि मेरी पहली फिल्म जो थी ‘मयुरी’, वह मेरी खुद की जिंदगी पर आधारित थी। दुख की बात है कि अब लोग और मीडिया बायॉपिक के बारे में इतनी बात कर रहा है, लेकिन हम कैसे भूल सकते हैं कि हमारे देश में पहली बायॉपिक जो थी वह ‘मयुरी’ थी और उसमें मैंने मयुरी का रोल प्ले किया था। कई बायॉपिक बनी हैं, लेकिन उनमें अब तक किसी ने भी खुद का रोल नहीं किया है। ऐसा करने वाली सिर्फ मैं ही एक थी, लेकिन कहीं भी उसका जिक्र नहीं होता। मेरी फिल्म के जो प्रड्यूसर थे, वही पहले इंसान थे जिन्होंने बायॉपिक बनाने का चलन शुरू किया।’
7 सालों तक बेरोजगार रही थीं सुधा चंद्रन
सुधा चंद्रन का फिल्म इंडस्ट्री में असली संघर्ष तब शुरू हुआ जब उनकी कई फिल्में फ्लॉप हो गईं और लोग आकर कहने लगे कि वह इंडस्ट्री के लिए नहीं बनी हैं। बकौल सुधा चंद्रन, ‘लोग कहते कि तुम्हारी जिंदगी पर बनी एक फिल्म चल गई है तो इसका मतलब यह नहीं है कि तुम इ इंडस्ट्री के लिए बनी हो। वो मुझे फिल्म इंडस्ट्री छोड़ने की सलाह देते। वो मुझसे कहते कि तुम इंटेलिजेट स्टूडेंट रही हो, आईएएस, आईएफएस की तैयारी करो। मैं खुश हूं कि भगवान मे मुझे यह खूबी दी है कि मैं किसी की बात नहीं सुनती। जब भी मेरे सामने कोई परेशानी आती है तो उसे मैं अपने पैरंट्स और पति के साथ डिसकस करती हूं। मुझे पूरा विश्वास रहता है कि मेरे लिए उनके फैसले कभी गलत साबित नहीं हो सकते।’
सुधा चंद्रन ने आगे बताया कि वह 7 सालों तक बेरोजगार रहीं। उनके पास कोई काम नहीं था। ‘नाचे मयुरी’ फिल्म के लिए नैशनल अवॉर्ड मिलने के बाद भी वह 7 साल घर पर बेरोजगार बैठीं। वह बोलीं, ‘आज लोग कहते हैं कि वह कोरोना के कारण 6 महीने भी सर्वाइव नहीं कर पा रहे और मैंने बिना काम के 6-7 साल बिताए हैं।’
एकता कपूर ने दिया मौका, बदली जिंदगी
सुधा चंद्रन को किसी करिश्मे का इंतजार था और वह एकता कपूर के टीवी शो ‘कहीं किसी रोज़’ के जरिए हुआ। वह शो सुधा चंद्रन की जिंदगी का टर्निंग पॉइंट था। सुधा की मानें तो जो लोग उन्हें इंडस्ट्री छोड़ने के लिए कह रहे थे, उन्होंने ही उन्हें नेगेटिव रोल के लिए बेस्ट ऐक्ट्रेस का खिताब दिया था। सुधा चंद्रन को जब एकता कपूर ने ‘कहीं किसी रोज’ में रमोला सिकंद के नेगेटिव किरदार के लिए अप्रोच किया था तो उस वक्त उनके पास कोई काम नहीं था। सुधा इस रोल को लेकर कन्फ्यूज थीं और मन में सवाल भी थे। फिर उन्होंने सोचा कि काम है नहीं और ऐसे में सवाल नहीं पूछने चाहिए। बस फिर सुधा ने वह रोल किया और आज लोग रियल लाइफ में सुधा चंद्रन को रमोला सिकंद के किरदार से भी पहचानते हैं।